भारत के इस स्मार्ट गांव में सौर ऊर्जा ने क्यों तोड़ा दम, वजह जानकर चौंक जाएंगे!

तमिलनाडु में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन कई गांवों में यह पूरी तरह सफल नहीं हो पाई। ग्रामीण इलाकों में बिजली की मांग बढ़ने और रखरखाव की कमी के कारण लोग अब भी पारंपरिक बिजली ग्रिड पर निर्भर हैं, जिससे आत्मनिर्भरता का लक्ष्य अधूरा रह गया।

सौर ऊर्जा की चुनौतियां

तमिलनाडु के कई गांवों में सरकार ने सौर ऊर्जा आधारित ग्रीन हाउस योजना शुरू की, जिससे ग्रामीणों को मुफ्त में सोलर पैनल मिले। हालांकि, देखरेख की सही व्यवस्था न होने के कारण दो साल के भीतर ही कई बैटरियां खराब हो गईं। स्थानीय लोग इन्हें ठीक नहीं कर पाए, जिससे वे दोबारा पारंपरिक बिजली पर निर्भर हो गए।

राज्य सरकार ने ग्रामीण इलाकों में बिजली की मांग को पूरा करने के लिए सब्सिडी वाली बिजली की व्यवस्था की। हालांकि, इस योजना से बिजली विभाग पर आर्थिक दबाव बढ़ा और अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर गंभीर समस्याएं बनी रहीं। सही प्लानिंग और रखरखाव के बिना सौर ऊर्जा की सफलता अधूरी ही रह गई।

भविष्य की ऊर्जा नीति

विशेषज्ञों का मानना है कि तमिलनाडु को अपनी सौर ऊर्जा नीति में बदलाव करने की जरूरत है। ग्रामीण इलाकों में माइक्रो ग्रिड और कम्युनिटी सोलर प्रोजेक्ट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे स्टोरेज बैटरी का खर्च कम हो। सरकार को सौर ऊर्जा को मुख्य ग्रिड से जोड़ने और बिजली सब्सिडी का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

तमिलनाडु में बिजली की खपत 2030 तक 50% बढ़ने की संभावना है, और सरकार का लक्ष्य है कि आधी जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी की जाए। हालांकि, इसके लिए मेंटेनेंस को मजबूत करना, स्थानीय समुदायों को जागरूक करना और बेहतर नीति बनाना जरूरी होगा। सही योजना और जागरूकता के साथ, तमिलनाडु अक्षय ऊर्जा का एक सफल मॉडल बन सकता है।

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